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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कुछ भी तो नहीं बदला

रात---
           आज भी महकती है ,
दिन---
            आज भी चहकता है,
पल---
            आज भी खनकते हैं,
हवा---
           आज भी सनसनाती है |
ना तो सूरज रूठा है,
      और,
          ना ही नाराज़ हुआ है चाँद |
कुछ भी तो नहीं बदला
इन बीते बरसों में;
                 सब कुछ है,
                            वैसा का वैसा |
बस---
          वक़्त के साथ,
          धुंदली हो गयीं,
                               चंद तस्वीरें |
 

2 टिप्‍पणियां:





  1. डॉ.कुमार गणेश जी
    नमस्कार !आज चिट्ठाजगत की मेहरबानी से आपका स्वागत करने का सुअवसर मिल रहा है ।
    … वैसे आप शायद अंतर्जाल पर मुझसे बहुत पहले से सक्रिय हैं ।

    बहुत अच्छी नज़्म के लिए बधाई और आभार स्वीकार करें ।

    कुछ भी तो नहीं बदला
    इन बीते बरसों में;
    सब कुछ है,
    वैसा का वैसा


    जान कर तसल्ली हुई ।

    बस---
    वक़्त के साथ,
    धुंदली हो गयीं,
    चंद तस्वीरें |


    वाह ! वाऽऽह !
    लेकिन वक़्त पर किसका जोर चला है ?!
    बहुत मार्मिक और भावपूर्ण रचना के लिए पुनः बधाई !

    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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