" कुछ लम्हे जब दिल की दीवारें कुरेच कर अन्दर उतर आते हैं,तो आँखों के ग़र्म पानी और दिल के जज़्बों को लफ़्ज़ों के साथ कर देता हूँ |... लोग कहते हैं कि मैंने ग़ज़लें-नज़्में कही हैं | "
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
ग़ज़ल---"हमनशीं हमनाम है"
तू माहताबे-हुस्न है,दो जहां में तेरा नाम है
तू चाहे तो शायर नामवर,न चाहे तो वो बदनाम है
ज़रा उठा के इक नज़र,देख लो शायर को तुम
उस के लिए तो बस यही,सब से बड़ा ईनाम है
अब की जब वो मिले,कह दी अपने दिल की बात
मेरी शायरी कुछ और नहीं,आप को पैग़ाम है
बे-मय-ओ-मीना ही बहक,जाता है आ के 'कुमार'
कैसा अजब ओ जाने-जां,तिरे मयकदे का निजाम है
जिस का हमें है इंतज़ार,क्या बताएँ हम 'कुमार'
है फ़क़त सूरत जुदा,वो हमनशीं हमनाम है
(रचना-तिथि:---12-09-1991)
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