tag:blogger.com,1999:blog-6034174334563350992024-03-21T23:39:09.455+05:30रेगज़ार" कुछ लम्हे जब दिल की दीवारें कुरेच कर अन्दर उतर आते हैं,तो आँखों के ग़र्म पानी और दिल के जज़्बों को लफ़्ज़ों के साथ कर देता हूँ |... लोग कहते हैं कि मैंने ग़ज़लें-नज़्में कही हैं | "डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-13205759694627823232011-12-05T11:25:00.000+05:302011-12-05T11:25:29.449+05:30'ऐ ज़िंदगी'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">चाँद-सूरज की खूंटियों पे,<br />
गीला दिल सूखने को टाँगा था|<br />
अपने लबों की लर्जिश थामने को, <br />
लिया था तेरा दोशीजा चेहरा हाथों में|<br />
ऐ ज़िन्दगी!<br />
क़दम-ताल तो कर ही रहा हूँ<br />
तेरे साथ,<br />
मगर-<br />
इतना तो बता दे, <br />
के, <br />
तेरी धुन इतनी मोहक क्यूँ है? <br />
<br />
<br />
</div>डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-73884243595434933652011-12-03T23:31:00.000+05:302011-12-03T23:31:37.398+05:30"तेरी हथेली पर ऐ वक़्त!"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जय श्री राम ............| आदरणीय मित्रो, पूरे एक साल का बहुत लंबा समय बीत गया है यहाँ आपसे बात किये| जब यह ब्लॉग शुरू किया तब सोच तो यह था कि आपसे रोज़ एक पोस्ट शेयर करेंगे; मगर देखिए न, पूरे एक साल का अंतराल आ गया| चलिए, अब कोशिश करेंगे कि इस तरह की बात फिर ना हो| आज हमारी शादी की सालगिरह भी है| इस मौक़े पर कोई पुरानी रचना न लेकर हाथोहाथ ही लिखी जा रही रचना ही आपकी सेवा में रख रहे हैं|<br />
<br />
मैंने,<br />
एक बूँद में तेरा चेहरा रख कर,<br />
उस से वजूद में अपने<br />
भर लिया उजाला|<br />
जज्बातों की गर्मी से<br />
फोड़ दिये<br />
शबनम के ओले| <br />
मैंने, <br />
दूज के चाँद की कोरों से <br />
उकेरा था चेहरा किसी का|<br />
वक़्त,<br />
तुम तब भी मेरे साथ नहीं थे<br />
और<br />
तुम अब भी मेरे साथ नहीं हो;<br />
मगर---<br />
मुझे इससे फ़र्क भी कहाँ पड़ता है;<br />
मैं अपने आप के साथ चला जा रहा हूँ,<br />
बेहद पुख्तगी के साथ<br />
अपने नक्श-ए-पा<br />
जमाते हुए<br />
तेरी हथेली पे|<br />
</div>डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-5032755225637268102010-12-02T09:18:00.001+05:302010-12-02T09:20:52.284+05:30ग़ज़ल---"हमनशीं हमनाम है"<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1gxNrSsDZgp-xYY8gaBuOI4wrPZF8V9nLo1F-8X_-FiwNVo9fvWk0KSOZaY4BsMRCaC_o79TdJvcn9sTy2cbX_NQQx22UrNc3FbtaZpyyooNbSFe82UtMr_e1wn7c8uWCM349tajcsatc/s1600/ANITA+MAURYA-7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1gxNrSsDZgp-xYY8gaBuOI4wrPZF8V9nLo1F-8X_-FiwNVo9fvWk0KSOZaY4BsMRCaC_o79TdJvcn9sTy2cbX_NQQx22UrNc3FbtaZpyyooNbSFe82UtMr_e1wn7c8uWCM349tajcsatc/s640/ANITA+MAURYA-7.jpg" width="464" /></a></div><br />
<span style="font-size: small;"> <span style="font-size: large;"> तू माहताबे-हुस्न है,दो जहां में तेरा नाम है </span></span><br />
<span style="font-size: large;"> तू चाहे तो शायर नामवर,न चाहे तो वो बदनाम है </span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> ज़रा उठा के इक नज़र,देख लो शायर को तुम </span><br />
<span style="font-size: large;"> उस के लिए तो बस यही,सब से बड़ा ईनाम है </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;"> अब की जब वो मिले,कह दी अपने दिल की बात </span><br />
<span style="font-size: large;"> मेरी शायरी कुछ और नहीं,आप को पैग़ाम है </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;"> बे-मय-ओ-मीना ही बहक,जाता है आ के 'कुमार' </span> <br />
<span style="font-size: large;"> कैसा अजब ओ जाने-जां,तिरे मयकदे का निजाम है </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;"> जिस का हमें है इंतज़ार,क्या बताएँ हम 'कुमार'</span><br />
<span style="font-size: large;"> है फ़क़त सूरत जुदा,वो हमनशीं हमनाम है </span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> (रचना-तिथि:---12-09-1991) </span><br />
<span style="font-size: small;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: small;"><br />
</span>डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-81207989599430543902010-11-22T22:20:00.000+05:302010-11-22T22:20:51.500+05:30ग़ज़ल---"सावन सूना "(सब से पहले तो क्षमाप्रार्थी हैं इस बात के लिए अपने अखबार 'अंक प्रभा' के श्रीगणेश की गतिविधियों में लगे रहने के कारण यहाँ से लम्बे समय के लिए दूर हो गये थे| अब लौट आये हैं| हाँ,आप से यह जानकारी अवश्य बाँटना चाहते हैं कि घोटेवाले,माँ बगलामुखी और परम पूज्य गुरुदेव देवराहा बाबा की कृपा और आप के आशीर्वाद से 'अंक प्रभा' अंकज्योतिष और बॉडी लैंग्वेज पर आधारित भारत का पहला अख़बार है|) <br />
सावन-सावन आँगन सूना<br />
आँगन-आँगन सावन सूना<br />
<br />
कोयल रानी! गुमसुम क्यूँ हो<br />
अब के तेरा गावन सूना<br />
<br />
मान की पीर बढ़ा दी जिस ने<br />
मेरा ये मान-भवन सूना<br />
<br />
एक मुसाफ़िर हम हैं हमारा<br />
आवन सूना जावन सूना <br />
(रचना-तिथि:---10-08-1997)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-71240905673102310892010-10-11T23:23:00.001+05:302010-10-11T23:27:09.523+05:30" मेरी ताक़त "<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3VlstZcU_VlFF-Df1VRqeRfrF24YXvlZAd4xMu_agM-Maj4LX29l3L0TPBnu1I-TDjMXH9dvqdeQ4w8XMdeV-oJk9hM3DKKHwS4GmctkXTDk_fXl9rozsMPk1Cq5OjRxvfPl308OsEBHF/s1600/INDORE-11.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3VlstZcU_VlFF-Df1VRqeRfrF24YXvlZAd4xMu_agM-Maj4LX29l3L0TPBnu1I-TDjMXH9dvqdeQ4w8XMdeV-oJk9hM3DKKHwS4GmctkXTDk_fXl9rozsMPk1Cq5OjRxvfPl308OsEBHF/s640/INDORE-11.jpg" width="640" /></a></div> <br />
मैंने-<br />
खायी हैं,<br />
ठोकरें; <br />
मैंने-<br />
सहा है;<br />
दर्द भी ; <br />
मैंने-<br />
लड़ी है लड़ाई,<br />
वक़्त से भी; <br />
मैंने-<br />
लड़ाया है पंजा,<br />
हालात से; <br />
मैं-<br />
पस्त नहीं हुआ,<br />
मुसीबतों से;<br />
मैं,<br />
गिरा नहीं,<br />
संकटों के आगे;<br />
मैं,<br />
गिड़गिड़ाया नहीं,<br />
हालात के सामने;<br />
डटा रहा,<br />
लड़ता रहा,<br />
जूझता रहा,<br />
मैंने-<br />
हर मुश्किल को,<br />
पटका है-जीता है,<br />
क्योंकि-<br />
मेरी सब से बड़ी ताक़त,<br />
श्रीमद्भगवद्गीता है | <br />
<br />
(रचना-तिथि:---11-10-2010)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-56757235271460794332010-10-09T21:53:00.000+05:302010-10-09T21:53:18.289+05:30" तलाश एक सत्य की " सत्य से परे ,<br />
एक सत्य की तलाश,<br />
जीवन की परतों के भीतर,<br />
वर्जित है प्रवेश मेरा,<br />
कहीं,<br />
मैं स्वयं की यात्रा न कर लूँ,<br />
वर्जनाओं के तांडव के बीच,<br />
जारी है तलाश,<br />
सत्य से परे,<br />
एक सत्य की |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---15-02-1998)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-27151319939750470542010-10-07T23:46:00.000+05:302010-10-07T23:46:37.928+05:30ग़ज़ल---" धरती की तरह इजहार करो " <br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF2deHLMt-Q85E_6EeeIXQthus4-kznR-qPrlduaQhFHfjg3cy-7tvPYVSBl0bN3RRRGHbDGLsqPDrdtqR8FUTXGxajVeXCbUVsNRHBeCoCPBZy0n5IlsU7yz9WoSif6cpqJKN0asrdFgO/s1600/me-25+jan,2000,jain+clg.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="404" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF2deHLMt-Q85E_6EeeIXQthus4-kznR-qPrlduaQhFHfjg3cy-7tvPYVSBl0bN3RRRGHbDGLsqPDrdtqR8FUTXGxajVeXCbUVsNRHBeCoCPBZy0n5IlsU7yz9WoSif6cpqJKN0asrdFgO/s640/me-25+jan,2000,jain+clg.jpg" width="640" /></a></div> इनकार करो, इक़रार करो<br />
प' आज हमें तुम प्यार करो<br />
<br />
जग समझे चाहे कुछ भी हमें<br />
प'तुम हम पे ऐतबार करो<br />
<br />
गीतों में सजा कर लाया हूँ<br />
ये भेंट मेरी स्वीकार करो<br />
<br />
आँखों में बसा लो नभ की तरा<br />
धरती की तरा इजहार करो<br />
<br />
मनमीत बना लो हम को तुम<br />
हम पर इतना उपकार करो<br />
<br />
ये 'कुमार' तुम्हारा अपना है<br />
तुम अपनी जुबां से इक़रार करो<br />
<br />
(रचना-तिथि:---26-04-1991)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-53599104121580711632010-10-05T22:22:00.000+05:302010-10-05T22:22:22.012+05:30ग़ज़ल---" तनहाइयाँ " हम को अब तक दे रही है,ज़िन्दगी तनहाइयाँ<br />
हर नफ़स,हर तार में बस,सिर्फ़ हैं तनहाइयाँ<br />
<br />
साथ छोड़ दिया है तेरे, ग़म ने भी अब तो<br />
हैं फ़क़त चार सू अब,अपने तो तनहाइयाँ<br />
<br />
मुझको मुल्के-ख़्वाब से, ना बुलाओ दोस्तो,<br />
आँखें खोलते वे ही फिर,घेर लेंगी तनहाइयाँ<br />
<br />
रात का सन्नाटा हाँ कुछ, गा कर सुनाता है<br />
दूर तक फ़जां में अब तो,हैं बसी तनहाइयाँ<br />
<br />
(रचना-तिथि:---28-07-1992)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-13826327118588371192010-10-04T11:19:00.000+05:302010-10-04T11:19:01.830+05:30नज़्म---" फ़ीनिक्स "<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6zaSDb0Zgn7xUEvP0QuNm604v-Cmv8lSllw7SR3vx29Jf3SQNXcwYp8Tf6BfS1QREMxOz8TTW5fFQEHmqQ2C47bydTTtJng6sWCkGfz2EaO2SZ6gxn2mI0eNA6NPd4OFNrcDimEq_MvXB/s1600/06-01-2010-MID+CL-LT-CHASHMA-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6zaSDb0Zgn7xUEvP0QuNm604v-Cmv8lSllw7SR3vx29Jf3SQNXcwYp8Tf6BfS1QREMxOz8TTW5fFQEHmqQ2C47bydTTtJng6sWCkGfz2EaO2SZ6gxn2mI0eNA6NPd4OFNrcDimEq_MvXB/s320/06-01-2010-MID+CL-LT-CHASHMA-1.jpg" width="240" /></a></div> राघवेन्द्र श्री राम<br />
और<br />
यादवेन्द्र श्री कृष्ण<br />
का रीमिक्स हूँ,<br />
मैं<br />
फ़ीनिक्स हूँ |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---वर्ष 2008 का पूवार्द्ध) डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-69300093837134446112010-10-03T21:26:00.000+05:302010-10-03T21:26:36.444+05:30नज़्म---" तुम यानी तुम से परे "<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe3zXIfdUWa031COkUj5VpVXE_msbOjUp4Nx2UR3cOXRmxaVeKQWaVJh1uuO0A6WP-bQJm2pjwlUsgEli31869s3qszTkpWeG-Fq8eL46wROomULQw76Lv_gyrT4vNlw4WeXpkN9RNHn9z/s1600/Copy+of+PRIYANKA+BOSE-tight+cropped.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhe3zXIfdUWa031COkUj5VpVXE_msbOjUp4Nx2UR3cOXRmxaVeKQWaVJh1uuO0A6WP-bQJm2pjwlUsgEli31869s3qszTkpWeG-Fq8eL46wROomULQw76Lv_gyrT4vNlw4WeXpkN9RNHn9z/s640/Copy+of+PRIYANKA+BOSE-tight+cropped.JPG" width="544" /></a></div><br />
तुम-<br />
जिसकी मुस्कुराहट से,<br />
खिली जाती हैं मेरी साँस ;<br />
जिस के तसव्वुर से ,<br />
सँवर-सँवर जाती है,<br />
ज़िन्दगी मेरी |<br />
<br />
तुम-<br />
धुंद की गहरी गुफा में,<br />
लिपटी-सहेजी,<br />
छुई-मुई-सी पाकीज़गी;<br />
दौड़ती-भागती नद्दी के,<br />
शोख़ पानी में तैरता,<br />
फूल |<br />
<br />
तुम-<br />
जिसके होने के अहसास से,<br />
होता है मुझे,<br />
ख़ुद के होने का अहसास;<br />
तराई में,<br />
चढ़ती शाम के साये में,<br />
बढ़ती,<br />
मासूम-कमसिन उदासी |<br />
<br />
ओ परी-रू !<br />
मैंने,<br />
हँसते फूलों पर लिक्खी हैं,<br />
सरगोशियाँ तेरे जिस्म की;<br />
आबशारों की उछालों पर,<br />
लिक्खे हैं बोल तेरी ख़ामुशी के |<br />
<br />
तुम-<br />
सुनो---हाँ---तुम;<br />
बहुत मासूम है,<br />
तिरी दोशीज़ ख़ूबसूरती;<br />
बहुत कमसिन है,<br />
तिरे लब की लर्ज़िश |<br />
<br />
मिरे तसव्वुर के जंगल में,<br />
तिरी आमद से,<br />
आती है,<br />
ख़यालों की बहार |<br />
तिरे होंठों से,<br />
नुमाया होते हैं,<br />
चाँद रमूज़,<br />
वक़्त-ए-रूबरू |<br />
कितनी मरमरी है,<br />
तिरे लफ़्ज़ों की छुअन,<br />
तिरे होंठ,<br />
करके कोई शरारत,<br />
तान लेते हैं खामुशी,<br />
और,<br />
ये दिल मुज़्तरिब हो कर,<br />
कहीं कुछ ढूँढ़ता रहता है |<br />
<br />
तुम-<br />
तुम से परे-<br />
बहुत कुछ हो-<br />
सब कुछ हो-<br />
मिरी ख़ातिर |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---06-05-1998)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-19972126971246854202010-10-02T22:58:00.000+05:302010-10-02T22:58:15.550+05:30" फराज़िन्द-ए-हिन्दोस्तान "( अज़ीम शख्सियत मरहूम लालबहादुर शास्त्री जी को श्रद्धांजलि ) <br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGO91YRlMoP_0suHd4Ler2IizALyaVfj0RZlLeyodivj7LeM28FDAEQMoViHMaFvxzZBAjZ2yL7oIYsuiwuTTCTUFuAbkNcrFxRAgJ2idAUt2XkN-SqkmIeSvVcbKbic6HaKXO4u31oK5o/s1600/LAL+BAHADUR+SHASTRI.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="377" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGO91YRlMoP_0suHd4Ler2IizALyaVfj0RZlLeyodivj7LeM28FDAEQMoViHMaFvxzZBAjZ2yL7oIYsuiwuTTCTUFuAbkNcrFxRAgJ2idAUt2XkN-SqkmIeSvVcbKbic6HaKXO4u31oK5o/s640/LAL+BAHADUR+SHASTRI.jpg" width="640" /></a></div><br />
हिन्दोस्तां को आप-सा,कोई रहनुमा मिले <br />
हादिसों की ज़द में,अब कोई रास्ता मिले<br />
<br />
इलाहबाद की गलियों से उठा,हिन्दोस्तां पे छा गया <br />
<br />
यूँ लगा इक और सूरज,आसमां पर आ गया<br />
<br />
गंगा के पानी-सी सादा,ज़िन्दगी उस की थी यारो<br />
हुक्मरां कैसे जिया करते हैं,ये बतला गया<br />
<br />
क़द का था छोटा वो लेकिन,हौंसलों का बादशाह<br />
ख़ुद मुख्तारी के तरीक़े मुल्क को सिखला गया<br />
<br />
वफ़ा-शियार-ए-मुल्क था,वो आखिरी दम तक रहा<br />
वतन-परस्ती की शमा,हर दिल में रौशन कर गया<br />
<br />
दुश्मनों के हमलों को ललकारा लालबहादुर ने<br />
हिन्दोस्तान पूरा का पूरा,उस के संग बढ़ आया था<br />
<br />
पाक के नापाक इरादे मटियामेट उस ने किये<br />
दुश्मनों को दिन में तारे,जांबाज़ वो दिखला गया<br />
<br />
सर मगर ऊँचा रहा हिन्दोस्तान का उस के दम<br />
हिन्दोस्तान का वीर वो हंगाम को झुठला गया<br />
<br />
जहां-भर की ताक़तों से,दर नहीं सकता ये मुल्क<br />
जोश-ए-तमनाओं का नेजा,इस तरह फहरा गया<br />
<br />
मुल्क था आँखें बिछाए,था उसी का इंतज़ार<br />
पर वो शांति-दूत अपने,अगले सफ़र पे चला गया<br />
<br />
हर दिल में उट्ठी हूक औ,हर दिल का दामन चक था<br />
लाल बहादुर मुल्क को,अश्कों से नहला गया<br />
<br />
<br />
आ भी जो मुल्क को,तिरी ज़रुरत पेश है<br />
नासबूर हैं हवाएँ जाने,वक़्त क्या दिखला गया<br />
<br />
काश ! वो मिसाले-लाल बहादुर फिर मिले<br />
'कुमार' गूंगी फ़रावां को,कहना जो सिखला गया<br />
<br />
(रचना-तिथि:---29-09-1994)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-20154409522193739432010-10-01T09:45:00.000+05:302010-10-01T09:45:27.973+05:30" मुद्राराक्षस "मरणासन्न भावनाएँ, <br />
मिटते सम्बन्ध-चिह्न, <br />
लुप्त होती नैतिकता, <br />
सब का हेतु एक- <br />
फैलता अर्थ-आयाम |<br />
जाने,<br />
कब,<br />
किस दिशा में,<br />
मिलेगा लक्ष्य?<br />
संभवतः,<br />
समाज सचमुच,<br />
बन गया है-<br />
मुद्राराक्षस |<br />
<br />
(रचानाता-तिथि:---07-06-92)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-90119030292100481112010-09-30T12:28:00.000+05:302010-09-30T12:28:10.496+05:30" मंदिर वहीँ बनाएँगे "<i>(राममंदिर के लिए अयोध्या में ०६ दिसंबर,१९९२ को शहीद हुए प्रातःस्मरणीय व्यक्तित्वों को प्रणाम-स्वरुप)</i><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgwIGRA5Lfj6SAfBedqtS-Jd9fsLv9gJ7HTlSmT2xarcVWURnSTkDJDTGZtNM85wD6Y7DrkWbSWJO9LJibKrbFoYQ7XA0dScSU59LvSnnS93A5jbeCjXpxOQ_VFbPX_zedQoDeNoqTI80V/s1600/bhagwan+ram.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgwIGRA5Lfj6SAfBedqtS-Jd9fsLv9gJ7HTlSmT2xarcVWURnSTkDJDTGZtNM85wD6Y7DrkWbSWJO9LJibKrbFoYQ7XA0dScSU59LvSnnS93A5jbeCjXpxOQ_VFbPX_zedQoDeNoqTI80V/s640/bhagwan+ram.jpg" width="521" /></a></div><br />
जहाँ शहीद हुए 'कोठारी बन्धु'*,वहाँ जां की बाज़ी लगाएँगे<br />
जहाँ राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...<br />
अब तो इन तूफानों को हम,दिल्ली तक ले जाएँगे <br />
जहाँ राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...<br />
<br />
हमें किसी से बैर नहीं पर,गद्दारों की ख़ैर नहीं<br />
अपने लिए कोई ग़ैर नहीं पर,गद्दारों की ख़ैर नहीं<br />
चुप रहने के दिन बीते,चुप रहने का अब समय नहीं<br />
इन गद्दारों से कह दो,अब ये कुछ भी करें नहीं<br />
अब अंगारे ही उछलेंगे,अब तो ज्वाला ही भड़केगी<br />
जो है सच्चा रामभक्त,उस की तो भुजाएँ फड़केंगी<br />
हम जन्मभूमि के दीवाने हैं,इस के लिए लुट जाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
फिर से रामलला होंगे वां ,हम ने ये इक़रार किया<br />
तुम न समझोगे गद्दारो ! तुम ने कब राम से प्यार किया<br />
किया खून का तिलक उन्होंने,जन्मभूमि के भाल पर<br />
है जन्मभूमि भी गर्वित अपने, उस रणबाँकुरे लाल पर<br />
तुम हनुमान हो हिन्दुओ ! ये लंका आज जला डालो<br />
भारत की रामायण से,रावण का नाम मिटा डालो<br />
अब ये शिवाजी-राणा प्रताप,आंधी बन के छाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
वो लोग हमें क्या समझेंगे,जिन्हें भारत से प्यार नहीं<br />
हमें चाहिए गर्वित हिन्दू,कुत्तों की दरकार नहीं<br />
अब देखेगा ये संसार कि,हिन्दू भला क्या होता है<br />
इस को देखे जो आँखें उठा कर,वो आँखों को खोता है<br />
हम तो प्यारे लाल क़िले पर,केसरिया लहराएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
जो इस धरती का खाते हैं,औरों के गुण गाते हैं<br />
जो इस के टुकड़े करने को,औरों से धन भी पते हैं<br />
वे कान खोल के सुन लें,उन के परखच्चे उड़ा देंगे<br />
सर्वनाश कर देंगे उन का,हम उन क नाम मिटा देंगे<br />
भारत को जो शूल भी चुभी,हम उन को शूली चढ़ा देंगे<br />
अपने हाथों को काट के हम ने,उन को आश्रयदान दिया<br />
वे हम को आँख दिखाते हैं,हम को ये प्रतिदान दिया<br />
बात-बात पर पकिस्तान का नारा लगाने वालो ! सुनो<br />
या तो राम का धाम चुनो,या बाबर की ज़ात चुनो<br />
बांग्लादेश औ'पाक को फिर से,भारत का अंग बनाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
<u>*'कोठारी बन्धु':---बीकानेर (राजस्थान) के दो भाइयों-राम और शरद कोठारी ने ०६ दिसंबर,१९९३ रामजन्मभूमि के माथे का कलंक मिटने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी </u><br />
<br />
(रचना-तिथि:---06-11-1993)<br />
<br />
<br />
<br />
राम,मंदिर,दिल्ली,गद्दारों,जन्मभूमि,हनुमान,हिन्दू,भारतडॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-28615980521635108972010-09-30T12:04:00.001+05:302010-09-30T12:26:22.345+05:30ग़ज़ल---" आशिक़ों को जगह दीजिए " सारे परदे उठा दीजिए<br />
हुस्न का मज़ा लीजिए<br />
<br />
आप का नूर आया है जो<br />
ये चराग़ बुझा दीजिए<br />
<br />
दिल हमारे बहल जाएँगे<br />
आप ज़रा मुस्करा दीजिए<br />
<br />
और लोग हो जाएँ पीछे<br />
आशिक़ों को जगह दीजिए<br />
<br />
आप का हाले-दिल जान लेंगे<br />
अपने दिल में जगह दीजिए<br />
<br />
ये नज़ारे मचल जाएँगे<br />
इक नज़र तो चला दीजिए<br />
<br />
हम ने कर ली मुहब्बत 'कुमार'<br />
अब चाहे जो सज़ा दीजिए<br />
<br />
(रचना-तिथि:---23-03-1992)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-26222979402144044932010-09-29T10:40:00.000+05:302010-09-29T10:41:52.549+05:30" मंदिर वहीँ बनाएँगे "<i>(राममंदिर के लिए अयोध्या में ०६ दिसंबर,१९९२ को शहीद हुए प्रातःस्मरणीय व्यक्तित्वों को प्रणाम-स्वरुप)</i><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEoFaLNiY8MKvxBi03Fcx1f5vgiEWnE0WSvsRSzuPgd1JUWz1WgJ8u0RCZDNsICd5LdEn5OWI7gQf5oYq5coE8qNDvLrZViddSmWIiNCZvmOXyoWNXCfRrjsARCjLOodhaVxrwCS6EMMw8/s1600/bhagwan+ram.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEoFaLNiY8MKvxBi03Fcx1f5vgiEWnE0WSvsRSzuPgd1JUWz1WgJ8u0RCZDNsICd5LdEn5OWI7gQf5oYq5coE8qNDvLrZViddSmWIiNCZvmOXyoWNXCfRrjsARCjLOodhaVxrwCS6EMMw8/s640/bhagwan+ram.jpg" width="521" /></a></div><br />
जहाँ शहीद हुए 'कोठारी बन्धु'*,वहाँ जां की बाज़ी लगाएँगे<br />
जहाँ राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...<br />
अब तो इन तूफानों को हम,दिल्ली तक ले जाएँगे <br />
जहाँ राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...<br />
<br />
हमें किसी से बैर नहीं पर,गद्दारों की ख़ैर नहीं<br />
अपने लिए कोई ग़ैर नहीं पर,गद्दारों की ख़ैर नहीं<br />
चुप रहने के दिन बीते,चुप रहने का अब समय नहीं<br />
इन गद्दारों से कह दो,अब ये कुछ भी करें नहीं<br />
अब अंगारे ही उछलेंगे,अब तो ज्वाला ही भड़केगी<br />
जो है सच्चा रामभक्त,उस की तो भुजाएँ फड़केंगी<br />
हम जन्मभूमि के दीवाने हैं,इस के लिए लुट जाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
फिर से रामलला होंगे वां ,हम ने ये इक़रार किया<br />
तुम न समझोगे गद्दारो ! तुम ने कब राम से प्यार किया<br />
किया खून का तिलक उन्होंने,जन्मभूमि के भाल पर<br />
है जन्मभूमि भी गर्वित अपने, उस रणबाँकुरे लाल पर<br />
तुम हनुमान हो हिन्दुओ ! ये लंका आज जला डालो<br />
भारत की रामायण से,रावण का नाम मिटा डालो<br />
अब ये शिवाजी-राणा प्रताप,आंधी बन के छाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
वो लोग हमें क्या समझेंगे,जिन्हें भारत से प्यार नहीं<br />
हमें चाहिए गर्वित हिन्दू,कुत्तों की दरकार नहीं<br />
अब देखेगा ये संसार कि,हिन्दू भला क्या होता है<br />
इस को देखे जो आँखें उठा कर,वो आँखों को खोता है<br />
हम तो प्यारे लाल क़िले पर,केसरिया लहराएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
जो इस धरती का खाते हैं,औरों के गुण गाते हैं<br />
जो इस के टुकड़े करने को,औरों से धन भी पते हैं<br />
वे कान खोल के सुन लें,उन के परखच्चे उड़ा देंगे<br />
सर्वनाश कर देंगे उन का,हम उन क नाम मिटा देंगे<br />
भारत को जो शूल भी चुभी,हम उन को शूली चढ़ा देंगे<br />
अपने हाथों को काट के हम ने,उन को आश्रयदान दिया<br />
वे हम को आँख दिखाते हैं,हम को ये प्रतिदान दिया<br />
बात-बात पर पकिस्तान का नारा लगाने वालो ! सुनो<br />
या तो राम का धाम चुनो,या बाबर की ज़ात चुनो<br />
बांग्लादेश औ'पाक को फिर से,भारत का अंग बनाएँगे<br />
... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे<br />
<br />
<u>*'कोठारी बन्धु':---बीकानेर (राजस्थान) के दो भाइयों-राम और शरद कोठारी ने ०६ दिसंबर,१९९३ रामजन्मभूमि के माथे का कलंक मिटाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी </u><br />
<br />
(रचना-तिथि:---06-11-1993)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-71779764759640113312010-09-28T10:26:00.000+05:302010-09-28T11:09:27.978+05:30ग़ज़ल---" मन का रिक्त शिवाला है " मैंने दर्द को पाला है<br />
हर घाव मिरा निवाला है<br />
<br />
जब से किसी की मूरत रूठी<br />
मन का रिक्त शिवाला है<br />
<br />
तेरा नाम लिखा जिस पे<br />
वो पन्ना आज निकाला है<br />
<br />
समय का पतझर ले डूबा<br />
अब बाग़ कहाँ हरियाला है<br />
<br />
कभी बना था रेत का दरिया<br />
'कुमार' आज हिमशाला है<br />
<br />
(रचना-तिथि:---28-11-1997)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-79445574513893004152010-09-27T13:01:00.000+05:302010-09-27T13:01:53.275+05:30नज़्म:---" अनदेखे,अनजाने देश " हँसते होंठों के बीच,<br />
और,<br />
मुस्कुराती पलकों में,<br />
अनदेखे,अनजाने,<br />
कई देश बसते हैं<br />
मगर,<br />
इन देशों तक पहुँचने के लिए,<br />
पहले,<br />
गुज़रना पड़ता है,<br />
रोते हुए कलेजों की,<br />
पगडंडियों से |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---28-06-1995)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-83995588488575765172010-09-26T20:15:00.000+05:302010-09-26T20:19:52.579+05:30ग़ज़ल---" कर के क्यूँ बंद किवाड़े रहता है ? " औरों के घर-आँगन में, जो आँखें फाड़े<br />
वो ही शख्स भला,करके-क्यूँ बंद किवाड़े रहता है ?<br />
(रचना-तिथि:---28-08-1998) <br />
गुरबत की क़ुर्बत के ही हैं, यार तमाशे ये सारे<br />
वरना सोचो-कौन शौक़ से,बदन उघाड़े रहता है ?<br />
(रचना-तिथि:---28-08-1998) <br />
उसका हँसना,उस का रोना,मुझ से जुदा हुए हैं यूँ<br />
वो जो मेरे घर-आँगन के,इस पसवाड़े* रहता है<br />
(*पसवाड़े-पहलू )<br />
(रचना-तिथि:---28-08-1998)<br />
ढूँढा तुमने कहाँ था उसको,और भला वो मिलता कैसे ?<br />
प्यार तो भैया तेरी नफ़रत,के पिछवाड़े रहता है<br />
(रचना-तिथि:---11-09-1998)<br />
सरगोशी करती हैं यादें,हूक यहाँ भी उठती है<br />
तेरे वहाँ ये मौसम तो,बस जाड़े-जाड़े रहता है<br />
(रचना-तिथि:---11-09-1998)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-91943502895132554582010-09-25T11:54:00.000+05:302010-09-25T11:54:13.502+05:30ग़ज़ल---" एक मुकम्मल दर्द हैं यादें "<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-ogj4ywbh9pl5VZhKl5kSQ2OUDPrLe8TYOVqa0Yy_fT1LOUVh3YbydMDM08ALSNatRZuKdx_Yrrn1gBqWAJjWEGOYwYOGJ4FQ3UW_maqrc_LEj6JhJ337JVfrsnnZZdH6sPf6hJCztgMe/s1600/woman_sad.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-ogj4ywbh9pl5VZhKl5kSQ2OUDPrLe8TYOVqa0Yy_fT1LOUVh3YbydMDM08ALSNatRZuKdx_Yrrn1gBqWAJjWEGOYwYOGJ4FQ3UW_maqrc_LEj6JhJ337JVfrsnnZZdH6sPf6hJCztgMe/s320/woman_sad.jpg" width="270" /></a></div><br />
आँसू आँख का गहना है<br />
इस को आँख में रहना है<br />
<br />
जीस्त दर्द का अफ़साना है<br />
इस को सब को कहना है<br />
<br />
एक मुकम्मल दर्द हैं यादें<br />
जिस को सब को सहना है<br />
<br />
रेत का एक क़िला है आशा<br />
इस को इक दिन ढहना है<br />
<br />
ये है शहर दर्द का जिसमें<br />
तुझ को 'कुमार' रहना है<br />
<br />
(रचना-तिथि:---30-08-1994)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-90720094998878136212010-09-24T17:33:00.000+05:302010-09-24T17:33:26.099+05:30नज़्म---" कसक "ज़िन्दगी में,<br />
दश्त-दर-दश्त,<br />
हम ने ढूँढा उसे,<br />
जो,<br />
मिल कर बिछड़ता रहा |<br />
हम मुश्ताक थे,<br />
के ज़िन्दगी लहलहाए,<br />
हवा का मीठा अंदाज़ आए,<br />
इन पुरनम आँखों के दाग़ धुलें,<br />
मगर,<br />
बियाबाने-ज़िन्दगी में,<br />
वक़्त के खूंखार भेड़िये ने,<br />
हमें मंजिल से दूर रखा |<br />
हम,<br />
सहरा में नहीं थे,<br />
प' हम चश्मे से बहुत दूर थे,<br />
जैसे,<br />
पहाड़ पर से गंगा निकले,<br />
पर पहाड़ प्यासा ही रह जाए,<br />
सिर्फ रास्ता बना रहे |<br />
हमें सभी,<br />
रास्ता बना कर आगे बढे,<br />
और,<br />
गयी नद्दी की तारा फिर नहीं लौटे,<br />
कभी नहीं लौटे |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---24-12-1993 )डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-77663981861678329332010-09-23T10:36:00.000+05:302010-09-23T10:36:26.678+05:30ग़ज़ल:--- " हमराह मिरा कहाँ रहा ? "हर शजर तिरी याद का,धू-धू कर के जल रहा,<br />
बेबसों की जमात में, मेरा दिल अव्वल रहा<br />
<br />
हर नफ़स में है घुटन,औ' हर तसव्वुर ख़ाक है,<br />
शहरे-दिल में अब के तो,मौत-सा मातम रहा<br />
<br />
<br />
चल रहे थे हम मुसलसल,वक़्त की रफ़्तार से,<br />
क्या पता इस राह में,हमराह मिरा कहाँ रहा ?<br />
<br />
वहीँ पे अपने दिल की, ख़्वाहिशें बेकार हैं,<br />
जिस जगह पे तेरे दिल का,ना कोई रस्ता रहा<br />
<br />
अपनी हालत खुद बयां,करना हमें आता नहीं,<br />
जिसे जो कुछ देखना हो,देख ले मैं कां रहा ?<br />
<br />
एक उस के नाम से ही,'कुमार' वाबस्ता न रह,<br />
क्या करेगा तब अगर जब,वो भी बेवफ़ा रहा<br />
<br />
(रचना-तिथि:---18-04-1993 ) डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-52541666510402596992010-09-22T12:58:00.000+05:302010-09-22T12:58:58.913+05:30ग़ज़ल::: " रहे हौसलामंद 'कुमार' ... "<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFnRvvg69X7OCwifPWiN1UFjhvpsFUiRKWkQYAGEoPkoDYTzu8g9XOwkLKVpvEdwKIMHS013IwNCcAFeQdWLiBzFXAAlymrLoKPWzmPO3O4udzo6dAsUdt_4SyQhFhcc8kNeg7QJ0KOGI0/s1600/INDORE-11-double+cropped.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFnRvvg69X7OCwifPWiN1UFjhvpsFUiRKWkQYAGEoPkoDYTzu8g9XOwkLKVpvEdwKIMHS013IwNCcAFeQdWLiBzFXAAlymrLoKPWzmPO3O4udzo6dAsUdt_4SyQhFhcc8kNeg7QJ0KOGI0/s640/INDORE-11-double+cropped.jpg" width="584" /></a></div><br />
क्या तो कहेंगे अपने क़िस्से;गो कि हम नाशाद रहे,<br />
अपने-बिराने, इस के-उस के; बंधन से आज़ाद रहे<br />
<br />
<br />
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में;थोड़ा तो ग़म घुल जाए,<br />
कुछ तो रोएँ, आँख भिगोएँ; ये बरसात भी याद रहे <br />
<br />
<br />
वक़्त के साथ सभी तो बदले;अपनों ने भी ठुकराया,<br />
इक बस दर्द ही साथ रहा; नाशाद रहे, या शाद रहे<br />
<br />
ठंडी हवा के झौंकों में; जलन है तेरी यादों की,<br />
जब-जब बरसीं बरसातें; बैचेन रहे, बेदाद रहे<br />
<br />
गुज़रा जब भी हमपे कोई ; लम्हा तेरी यादों का,<br />
दिल में गहरी हूक उठी; ग़म के घर आबाद रहे<br />
<br />
तेरा ही तो अक्स छुपा है;मेरी ग़ज़लों के शे'रों में,<br />
तेरे ही तो दम पे कहीं; हम जो रहे, इरशाद रहे<br />
<br />
ग़म की घटाएँ,दर्द के बादल,यादों की तूफ़ानी हवाएँ,<br />
रहे हौसलामंद 'कुमार'; हाँ, अब के ये ईजाद रहे<br />
<br />
(रचना-तिथि:---15-06-1993)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-67743652176975412242010-09-21T23:48:00.000+05:302010-09-21T23:48:00.703+05:30नज़्म---" मेरा अपना आप "तेरे तमाम तसव्वुरात के सायो को ओढ़े,<br />
मेरी सुनहरी तमन्नाएँ,<br />
कड़ी हैं ज़िन्दगी के बियाबां में |<br />
हर सू तेज़ है नाउम्मीदी की धूप,<br />
वीरानिओं के परबत हैं,<br />
पत्थरों पे रेंगते,<br />
लफ़्ज़ों के लिबास ओढ़े,<br />
मिरे जज्बे,<br />
छिल गए हिन् इन कछुओं के पाँव;<br />
लहू तो खैर अब,<br />
रहा ही नहीं |<br />
तिरे बग़ैर नातमाम है,<br />
ये जिंदगी,<br />
क्यूं के,<br />
तू मेरा अपना आप है |<br />
<br />
<br />
(रचना-तिथि:---28-06-1995)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-4220223051444194452010-09-20T23:40:00.000+05:302010-09-20T23:40:00.450+05:30ग़ज़ल---" आँख का मर गया पानी "(यह रचना साप्ताहिक फ़िल्मी अख़बार 'एक्सप्रेस स्क्रीन,मुंबई' में 24-12-1994 को प्रकशित हो चुकी है | ) <br />
<br />
जब भी हद से गुज़र गया पानी<br />
समझो,आँख का मर गया पानी<br />
<br />
हम को डुबोने ही आया था तूफां<br />
हम को डुबो के उतर गया पानी<br />
<br />
भटका है परबत-नदिया-दरिया<br />
तब फिर अपने घर गया पानी<br />
<br />
राहें अपनी खुद ही बनायीं<br />
गाता-मचलता जिधर गया पानी<br />
<br />
ग़म ने 'कुमार' का दिल सोखा है<br />
ख़ुशियों का जाने किधर गया पानीडॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-603417433456335099.post-56041191296394037612010-09-19T23:34:00.000+05:302010-09-19T23:34:00.744+05:30नज़्म---" कुछ पत्ते और तुम "जो तन्हा हैं,<br />
पूरी तरह ख़ामोश हैं,<br />
गुमसुम हैं,<br />
मिरे आस-पास;<br />
मैं जिन्हें नहीं दे सकता,<br />
झूठा दिलासा भी;<br />
ये ही कुछ पत्ते,<br />
लम्हे हैं,<br />
तिरे साथ के |<br />
<br />
(रचना-तिथि:---22-08-1998)डॉ कुमार गणेशhttp://www.blogger.com/profile/17952974516620998912noreply@blogger.com1