" कुछ लम्हे जब दिल की दीवारें कुरेच कर अन्दर उतर आते हैं,तो आँखों के ग़र्म पानी और दिल के जज़्बों को लफ़्ज़ों के साथ कर देता हूँ |... लोग कहते हैं कि मैंने ग़ज़लें-नज़्में कही हैं | "
गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010
ग़ज़ल---" धरती की तरह इजहार करो "
इनकार करो, इक़रार करो
प' आज हमें तुम प्यार करो
जग समझे चाहे कुछ भी हमें
प'तुम हम पे ऐतबार करो
गीतों में सजा कर लाया हूँ
ये भेंट मेरी स्वीकार करो
आँखों में बसा लो नभ की तरा
धरती की तरा इजहार करो
मनमीत बना लो हम को तुम
हम पर इतना उपकार करो
ये 'कुमार' तुम्हारा अपना है
तुम अपनी जुबां से इक़रार करो
(रचना-तिथि:---26-04-1991)
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