हम को अब तक दे रही है,ज़िन्दगी तनहाइयाँ
हर नफ़स,हर तार में बस,सिर्फ़ हैं तनहाइयाँ
साथ छोड़ दिया है तेरे, ग़म ने भी अब तो
हैं फ़क़त चार सू अब,अपने तो तनहाइयाँ
मुझको मुल्के-ख़्वाब से, ना बुलाओ दोस्तो,
आँखें खोलते वे ही फिर,घेर लेंगी तनहाइयाँ
रात का सन्नाटा हाँ कुछ, गा कर सुनाता है
दूर तक फ़जां में अब तो,हैं बसी तनहाइयाँ
(रचना-तिथि:---28-07-1992)
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