दिल तो टूटी डाल है,
बिखरा हुआ पांडाल है |
तुम यहाँ पे जी लोगे ?
यां तो चलाना मुहाल है |
भूख बजाये शाम-सवेरे,
ग़रीब का पेट खड़ताल है |
दिल के दरवाजे बंद क्यूं ?
वां भी क्या हड़ताल है ?
बेटे के डाह के पैसे मांगे,
ज़िन्दगी तो चांडाल है |
इन्सां यहाँ विक्रम है 'कुमार',
ख़ुशी यहाँ बेताल है |
(रचना-तिथि:---3 से 6 जनवरी,1995 )
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