जब से तेरे शहर से बिछड़ा,चैन से अब तक ना सोया
आसमान से टूटा तारा,तू क्या जाने कितना रोया
बरसों भटका दूर किनारे,सदियाँ गुज़रीं रात अंधेरे
बरसों थामी तेरी हसरत,तेरा दामन हो गोया
तुझ से अलग ना कुछ हूँ,तेरा साथ ही सब कुछ था
तुम बिन क्या ये जीना-मरना,क्या जागा,मैं क्या सोया
मेरा तसव्वुर मुँह ताके है,किस के ख्वाब भरूँ इस में
तेरे बिना हैं फ़क़त खलाएँ,तुम बिन यां पे कुछ ना होया
( रचना-तिथि:---22-08-1999 )
जब से तेरे शहर से बिछड़ा,चैन से अब तक ना सोया
जवाब देंहटाएंआसमान से टूटा तारा,तू क्या जाने कितना रोया
बहुत अच्छी लगी आपकी ये ग़ज़ल
बहुत अच्छी लगी आपकी ये ग़ज़ल|
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी...
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