सारे परदे उठा दीजिए
हुस्न का मज़ा लीजिए
आप का नूर आया है जो
ये चराग़ बुझा दीजिए
दिल हमारे बहल जाएँगे
आप ज़रा मुस्करा दीजिए
और लोग हो जाएँ पीछे
आशिक़ों को जगह दीजिए
आप का हाले-दिल जान लेंगे
अपने दिल में जगह दीजिए
ये नज़ारे मचल जाएँगे
इक नज़र तो चला दीजिए
हम ने कर ली मुहब्बत 'कुमार'
अब चाहे जो सज़ा दीजिए
(रचना-तिथि:---23-03-1992)
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