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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

" मंदिर वहीँ बनाएँगे "

(राममंदिर के लिए अयोध्या में ०६ दिसंबर,१९९२ को शहीद हुए  प्रातःस्मरणीय व्यक्तित्वों को प्रणाम-स्वरुप)

जहाँ शहीद हुए 'कोठारी बन्धु'*,वहाँ जां की बाज़ी लगाएँगे
जहाँ  राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...
अब तो इन तूफानों को हम,दिल्ली तक ले जाएँगे
जहाँ  राम ने जन्म लिया है,मंदिर वहीँ बनाएँगे ...

हमें किसी से बैर नहीं पर,गद्दारों  की ख़ैर नहीं
अपने लिए कोई ग़ैर नहीं पर,गद्दारों की ख़ैर नहीं
 चुप रहने के दिन बीते,चुप रहने का अब समय नहीं
इन गद्दारों से कह दो,अब ये कुछ भी करें नहीं
अब अंगारे ही उछलेंगे,अब तो ज्वाला ही भड़केगी
जो है सच्चा रामभक्त,उस की तो भुजाएँ फड़केंगी
हम जन्मभूमि के दीवाने हैं,इस के लिए लुट जाएँगे
        ... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे

फिर से रामलला होंगे वां ,हम ने ये इक़रार किया
तुम न समझोगे गद्दारो ! तुम ने कब राम से प्यार किया
किया खून का तिलक उन्होंने,जन्मभूमि के भाल पर
है जन्मभूमि भी गर्वित अपने, उस रणबाँकुरे लाल पर
तुम हनुमान हो हिन्दुओ ! ये लंका आज जला डालो
भारत की रामायण से,रावण का नाम मिटा डालो
 अब ये शिवाजी-राणा प्रताप,आंधी बन के छाएँगे
            ... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे

वो लोग हमें क्या समझेंगे,जिन्हें भारत से प्यार नहीं
हमें चाहिए गर्वित हिन्दू,कुत्तों की दरकार नहीं
अब देखेगा ये संसार कि,हिन्दू भला क्या होता है
इस को देखे जो आँखें उठा कर,वो आँखों को खोता है
हम तो प्यारे लाल क़िले पर,केसरिया लहराएँगे
          ... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे

जो इस धरती का खाते हैं,औरों के गुण गाते हैं
जो इस के टुकड़े करने को,औरों से धन भी पते हैं
वे कान खोल के सुन लें,उन के परखच्चे उड़ा देंगे
सर्वनाश कर देंगे उन का,हम उन क नाम मिटा देंगे
भारत को जो शूल भी चुभी,हम उन को शूली चढ़ा देंगे
अपने हाथों को काट के हम ने,उन को आश्रयदान दिया
 वे हम को आँख दिखाते हैं,हम को ये प्रतिदान दिया
बात-बात पर पकिस्तान का नारा लगाने वालो ! सुनो
या तो राम का धाम चुनो,या बाबर की ज़ात चुनो
बांग्लादेश औ'पाक को फिर से,भारत का अंग बनाएँगे
         ... जहाँ राम ने जन्म लिया,हम मंदिर वहीँ बनाएँगे

*'कोठारी बन्धु':---बीकानेर (राजस्थान) के दो भाइयों-राम और शरद कोठारी  ने ०६ दिसंबर,१९९३ रामजन्मभूमि के माथे का कलंक मिटने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी  

                                        (रचना-तिथि:---06-11-1993)



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2 टिप्‍पणियां:

  1. भावनाएं अच्छी हैं....पर हम हिंदु मुसलमान सब मिलकर ऐसा करने वाले हैं....पूर् सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ

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  2. bese to ye sahi ki mandir vaha per hi bne... lekin ye bhi dhyan dene bali bat h ki santi bni rhe...............

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