जो तन्हा हैं,
पूरी तरह ख़ामोश हैं,
गुमसुम हैं,
मिरे आस-पास;
मैं जिन्हें नहीं दे सकता,
झूठा दिलासा भी;
ये ही कुछ पत्ते,
लम्हे हैं,
तिरे साथ के |
(रचना-तिथि:---22-08-1998)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसमझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें