तेरे तमाम तसव्वुरात के सायो को ओढ़े,
मेरी सुनहरी तमन्नाएँ,
कड़ी हैं ज़िन्दगी के बियाबां में |
हर सू तेज़ है नाउम्मीदी की धूप,
वीरानिओं के परबत हैं,
पत्थरों पे रेंगते,
लफ़्ज़ों के लिबास ओढ़े,
मिरे जज्बे,
छिल गए हिन् इन कछुओं के पाँव;
लहू तो खैर अब,
रहा ही नहीं |
तिरे बग़ैर नातमाम है,
ये जिंदगी,
क्यूं के,
तू मेरा अपना आप है |
(रचना-तिथि:---28-06-1995)
बढ़िया!
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