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बुधवार, 22 सितंबर 2010

ग़ज़ल::: " रहे हौसलामंद 'कुमार' ... "


 क्या तो कहेंगे अपने क़िस्से;गो कि हम नाशाद रहे,
 अपने-बिराने, इस के-उस के; बंधन से आज़ाद रहे


रिमझिम-रिमझिम बूँदों में;थोड़ा तो ग़म घुल जाए,
कुछ तो रोएँ, आँख भिगोएँ; ये बरसात भी याद रहे  


वक़्त के साथ सभी तो बदले;अपनों ने भी ठुकराया,
इक बस दर्द ही साथ रहा; नाशाद रहे, या शाद रहे

ठंडी हवा के झौंकों में;  जलन है तेरी यादों की,
जब-जब बरसीं बरसातें;  बैचेन रहे,  बेदाद रहे

गुज़रा जब भी हमपे कोई ; लम्हा तेरी यादों का,
दिल में गहरी हूक उठी; ग़म के घर आबाद रहे

तेरा ही तो अक्स छुपा है;मेरी ग़ज़लों के शे'रों में,
तेरे ही तो दम पे कहीं; हम जो रहे,  इरशाद रहे

ग़म की घटाएँ,दर्द के बादल,यादों की तूफ़ानी हवाएँ,
रहे हौसलामंद 'कुमार';  हाँ, अब के ये ईजाद रहे

(रचना-तिथि:---15-06-1993)

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