" कुछ लम्हे जब दिल की दीवारें कुरेच कर अन्दर उतर आते हैं,तो आँखों के ग़र्म पानी और दिल के जज़्बों को लफ़्ज़ों के साथ कर देता हूँ |... लोग कहते हैं कि मैंने ग़ज़लें-नज़्में कही हैं | "
बुधवार, 22 सितंबर 2010
ग़ज़ल::: " रहे हौसलामंद 'कुमार' ... "
क्या तो कहेंगे अपने क़िस्से;गो कि हम नाशाद रहे,
अपने-बिराने, इस के-उस के; बंधन से आज़ाद रहे
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में;थोड़ा तो ग़म घुल जाए,
कुछ तो रोएँ, आँख भिगोएँ; ये बरसात भी याद रहे
वक़्त के साथ सभी तो बदले;अपनों ने भी ठुकराया,
इक बस दर्द ही साथ रहा; नाशाद रहे, या शाद रहे
ठंडी हवा के झौंकों में; जलन है तेरी यादों की,
जब-जब बरसीं बरसातें; बैचेन रहे, बेदाद रहे
गुज़रा जब भी हमपे कोई ; लम्हा तेरी यादों का,
दिल में गहरी हूक उठी; ग़म के घर आबाद रहे
तेरा ही तो अक्स छुपा है;मेरी ग़ज़लों के शे'रों में,
तेरे ही तो दम पे कहीं; हम जो रहे, इरशाद रहे
ग़म की घटाएँ,दर्द के बादल,यादों की तूफ़ानी हवाएँ,
रहे हौसलामंद 'कुमार'; हाँ, अब के ये ईजाद रहे
(रचना-तिथि:---15-06-1993)
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बहुत अच्छे भाव से पिरोई ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंअलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
wonderfully weaved thoughts!
जवाब देंहटाएंsubhkamnayen!