" कुछ लम्हे जब दिल की दीवारें कुरेच कर अन्दर उतर आते हैं,तो आँखों के ग़र्म पानी और दिल के जज़्बों को लफ़्ज़ों के साथ कर देता हूँ |... लोग कहते हैं कि मैंने ग़ज़लें-नज़्में कही हैं | "
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
"ग़ज़ल"
उस को अब मैं,कहाँ से लाऊँगा,
वैसा हमदम,कहाँ से पाऊँगा |
इम्तिहां मेरा,लेती है ज़िन्दगी,
मैं तो इस से,गुज़र भी जाऊँगा |
मेरी ग़ज़लें हैं,गीत जीवन के,
आख़री साँस तक,मैं गाऊँगा |
मैं सांच बोलता हूँ,बस्ती में,
सरे-बाज़ार,मारा जाऊँगा |
ये जुदाई तो,कोई बात नहीं,
तुम बुलाना,मैं लौट आऊँगा |
मुझ से मांगो न,मेरे बीते दिन,
अपने बिछड़े,कहाँ से लाऊँगा |
तुम से नाता जुड़ा है,कुछ ऐसे,
जहाँ जाऊँगा,तुम को पाऊँगा |
(रचना-तिथि:---21 मई,1995 )
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