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गुरुवार, 16 सितंबर 2010

ग़ज़ल:--- " इस में भी कोई बात है "

ख़्याल ही की बात है
तेरा मेरा साथ है

यां पहले भी रात थी
यां अब भी रात है

ये बिखरी-बिखरी ज़िन्दगी
जाने किस की सौग़ात है

तुझ को भूल जाएँ हम
ये भी कोई बात है ?

ग़म का झुरमट छाया है
अश्क़ों की बरसात है

पहले भी में तन्हा था
अब भी कौन साथ है

आज चुप-चुप है 'कुमार'
इस में भी कोई बात है


(रचना-तिथि:---05-06-1993 )

2 टिप्‍पणियां:

  1. पहले भी में तन्हा था
    अब भी कौन साथ है

    बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने ....

    इसे भी पढ़े :-
    (आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
    http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html

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