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सोमवार, 20 सितंबर 2010

ग़ज़ल---" आँख का मर गया पानी "

(यह रचना साप्ताहिक फ़िल्मी अख़बार 'एक्सप्रेस स्क्रीन,मुंबई' में 24-12-1994 को प्रकशित हो चुकी है | ) 

जब भी हद से गुज़र गया पानी
समझो,आँख का मर गया पानी

हम को डुबोने ही आया था तूफां
हम को डुबो के उतर गया पानी

भटका है परबत-नदिया-दरिया
तब फिर अपने घर गया पानी

राहें अपनी खुद ही बनायीं
गाता-मचलता जिधर गया पानी

ग़म ने 'कुमार' का दिल सोखा है
ख़ुशियों का जाने किधर गया पानी

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