मुस्कुराहट---
सुबुह के सूरज की
बादलों के बीच;
जिस की ख़ातिर
जागता हूँ ,
सारी रात---मैं |
ललाई---
जाते दिन की
बिछड़े बादलों के बीच;
जिस की ख़ातिर
काटता हूँ ,
सारा दिन---मैं |
मेरे वजूद का
पोर-पोर है---
तुम्हारी याद | |
(रचना-तिथि:---22-08-1998)
क्या बात है सर.... बहुत ही उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंजय श्री राम...
सरल और सुन्दर.. अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों को पिरोया है यादों के बहाने।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
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